वेल्डन विद्युत प्रदाय
वेल्डन विद्युत प्रदाय या 'वेल्डिंग पॉवर स्प्लाई' वह युक्ति है जो वेल्डिंग करने के लिए विद्युत धारा प्रदान करती है।
वेल्डन के लिए प्रायः उच्च धारा (80 अम्पीयर से अधिक) आवश्यक होती है। स्पॉट वेल्डिंग में 12,000 एम्पीयर तक धारा आवश्यक हो सकती है। कहीं-कहीं कम धारा से भी वेल्डिंग की जाती है। जैसे, दो रेजर ब्लेडों को परस्पर वेल्ड करने के लिए ५ अम्पीयर वाली टंगस्टन आर्क वेल्डिंग।
वेल्डन शक्ति प्रदाय बहुत सरल हो सकती है (जैसे, कार बैटरी द्वारा वेल्डन) या बहुत जटिल हो सकती है (जैसे, IGBT का प्रयोग करके उच्च आवृत्ति पर स्विच करके बनी पॉवर सप्लाय)।
वर्गीकरण
[संपादित करें]वेल्डिंग पॉवर सप्लाई का वर्गीकरण इस आधार पर करते हैं कि वे नियत-धारा प्रदान करतीं हैं या नियत वोल्टता।
नियत-धारा वाली वेल्डन विद्युत प्रदाय
[संपादित करें]इस तरह की पॉवर सप्लाई की आउटपुट धारा नियत होती है, भले ही इलेक्ट्रोडों के बीच की दूरी कम या अधिक रखी जाय। अर्थात् इलेक्ट्रोडों के बीच की दूरी कम या अधिक करने पर पावर सप्लाई स्वयं आउटपुट वोल्तता को इस प्रकार बदल देती है कि आउटपुट धारा नियत बनी रहे (कम-अधिक न होने पाये।)।
शिल्डेड मेटल आर्क वेल्डिंग तथा गैस टंगस्टन आर्क वेल्डिंग में नियत धारा वाली विद्युत प्रदाय काम आती है।
नियत-वोल्टता वाली वेल्डन विद्युत प्रदाय
[संपादित करें]गैस मेटल आर्क वेल्डिंग तथा फ्ल्क्स-कोर आर्क वेल्डिंग में प्रायः नियत-वोल्टता वाली विद्युत प्रदाय प्रयुक्त होती है। यहाँ नियत-वोल्टता वाली वेल्डन विद्युत प्रदाय की आवश्यकता इसलिए पड़ती है क्योंकि वेल्डर हाथों सें इतनी तेजी से आर्क की लम्बाई को नियंत्रित नहीं कर पाता। किन्तु यदि नियत-वोल्टता वाली वेल्डिंग पावर सप्लाई का उपयोग शिल्डेड मेटल आर्क वेल्डिंग के लिए करें तो हाथ हिलने से आर्क की लम्बाई में थोड़ा परिवर्तन होने पर भी वेल्डिंग करेंट में बहुत अधिक परिवर्तन कर देता है जिससे वेल्डिंग की गुणवत्ता खराब होती है। अतः वहाँ नियत-धारा वेल्डिंग पॉवर सप्लाई ही प्रयोग की जानी चाहिए।
वेल्डन विद्युत प्रदाय के विभिन्न डिजाइन
[संपादित करें](१) ट्रांसफॉर्मर पर आधारित - प्रायः यह ट्रांसफॉर्मर उच्च लीकेज वाला है। यह ट्रांसफॉर्मर प्रायः सेकेण्डरी साइड में ५५ एम्पीयर से ५९० एम्पीयर तक के होते हैं। इनकी सेकेण्डरी का ओपेन-सर्कित वोल्टेज १७ वोल्ट से ४५ वोल्त तक होता है। कुछ मशीनों में सेकेण्डरी साइड में रेक्टिफायर लगा होता है जो प्रत्यावर्ती धारा के बजाय डायरेक्ट करेंट देती है जिससे बेहतर वेल्डिंग होती है।
(२) जनरेटर और अल्टरनेटर
(३) इन्वर्टर - इनमें पहले एसी को दीसी बना लिया जाता है। फिर दीसी को उच्च आवृत्ति (लगभग १० कोलोहर्ट्ज) पर स्विच करके एसी बनायी जाती है। उच्च आवृत्ति पर स्विच करने के कारण इसमें छोटे आकार का ट्रांसफॉर्मर लगता है। इसके अलावा इसमें ओवरलोद रोकने की अच्छी व्यवस्था होती है।
(४) अन्य -